बेटियाँ
कविता :
“बेटियाँ”
घर मे खुशियों की बौछार , लाती हैं “बेटियाँ”
सूने घरों मे त्यौहार , लाती हैं “बेटियाँ”
माँ की सहेली पापा की लाडली , बन जाती हैं “बेटियाँ”
दादी और दादा की भी खास , कहलाती हैं “बेटियाँ”
अपने प्यारे भाई पर खूब हुक्म , चलाती हैं “बेटियाँ”
अपनी बुआ की पक्की सखी , हो जाती है “बेटियाँ”
एक दिन ऐसा आता है , ससुराल चली जाती है “बेटियाँ”
हँसते खेलते घर को सूना , कर जाती हैं “बेटियाँ”
ससुराल में रहकर भी सारे रिश्ते , निभाती हैं “बेटियाँ”
जगह वो जन्नत से कम नहीं , जहाँ आ जाती हैं “बेटियाँ”
(बेटियों को समर्पित)
(स्वरचित)
विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
@9410416986
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