Skip to the content

Hanshindimagazine

  • Email: hanshindi749@gmail.com
Facebook-f Twitter Youtube
clarity-logo-img
  • होम
  • हमारे बारे में
    • हमारी कहानी
    • हमारे संस्थापक
    • हमारी टीम
    • हमारे आयोजन
  • हंस खरीदें
    • मुद्रित प्रति
      • एजेंट से खरीदें
      • कार्यालय से खरीदें
    • ऑनलाइन प्रति ( पी. डी . एफ़ )
    • विशेषांक
    • पुस्तकें
  • हंस-वाणी
    • ऑडियो अंक खरीदें
    • हंस वाणी सदस्य बने
  • सदस्य बने
    • व्यक्तिगत सदस्यता
      • अंतर्देशीय व्यक्तिगत मुद्रित प्रति सदस्यता
      • अंतर्देशीय व्यक्तिगत ऑनलाइन पीडीएफ प्रति सदस्यता
      • विदेशी व्यक्तिगत ऑनलाइन पीडीएफ प्रति सदस्यता
      • विदेशी व्यक्तिगत मुद्रित प्रति सदस्यता
    • संस्थागत सदस्यता
      • विदेशी संस्थागत मुद्रित प्रति सदस्यता
      • विदेशी संस्थागत ऑनलाइन पीडीएफ प्रति सदस्यता
      • अंतर्देशीय संस्थागत ऑनलाइन पीडीएफ प्रति सदस्यता
      • अंतर्देशीय संस्थागत मुद्रित प्रति सदस्यता
  • ब्लॉग
    • ब्लॉग पढ़ें
    • ब्लॉग लिखें
  • संपर्क करें
  • मेरा आकाउंट
  • ऑफर
  • Email: hanshindi749@gmail.com
Facebook-f Twitter Youtube
clarity-logo-img
  • होम
  • हमारे बारे में
    • हमारी कहानी
    • हमारे संस्थापक
    • हमारी टीम
    • हमारे आयोजन
  • हंस खरीदें
    • मुद्रित प्रति
      • एजेंट से खरीदें
      • कार्यालय से खरीदें
    • ऑनलाइन प्रति (पी-डी-एफ)
    • विशेषांक
    • पुस्तकें
  • हंस वाणी
    • ऑडियो अंक खरीदें
    • हंस वाणी सदस्य बने
  • सदस्य बने
    • व्यक्तिगत सदस्यता
      • अंतर्देशीय व्यक्तिगत मुद्रित प्रति सदस्यता
      • अंतर्देशीय व्यक्तिगत ऑनलाइन पीडीएफ प्रति सदस्यता
      • विदेशी व्यक्तिगत ऑनलाइन पीडीएफ प्रति सदस्यता
      • विदेशी व्यक्तिगत मुद्रित प्रति सदस्यता
    • संस्थागत सदस्यता
      • विदेशी संस्थागत मुद्रित प्रति सदस्यता
      • विदेशी संस्थागत ऑनलाइन पीडीएफ प्रति सदस्यता
      • अंतर्देशीय संस्थागत ऑनलाइन पीडीएफ प्रति सदस्यता
      • अंतर्देशीय संस्थागत मुद्रित प्रति सदस्यता
  • ब्लॉग
    • ब्लॉग पढ़ें
    • ब्लॉग लिखें
  • संपर्क करें
  • ऑफर
₹0.00 Cart
hi Hindi▼
X
en Englishhi Hindi
पीडीएफ(व्यक्तिगत)/ (संस्थागत) पांच वर्ष की सदस्यता लेने पर 200 रु की बचत। कूपन कोड- Member 5 का इस्तेमाल करें

Cart

Your cart is currently empty.

Return to shop

न्यूज़लेटर अपडेट प्राप्त करें

128x111-w
हमारी कंपनी
  • हमारे बारे में
  • हंस वाणी
  • ब्लॉग
  • संपर्क करें
उपयोगी कड़ियां
  • आयोजन
  • सदस्य बने
हमारा अनुसरण करें
  • फेसबुक
  • ट्विटर
  • यूट्यूब
संपर्क विवरण
  • 4229/1, अंसारी रोड, दरियागंज
    नई दिल्ली, 110002
  • +91 9717239112
    +91 9810622144
  • hanshindi749@gmail.com
    editorhans@gmail.com
Copyright © 2023 Hanshindimagazines. All rights reserved.
Designed by Crushaders Tech
  • Login
  • Sign Up
Forgot Password?
Lost your password? Please enter your username or email address. You will receive a link to create a new password via email.
राजेन्द्र यादव का जन्म 28 अगस्त 1929 को उत्तर प्रदेश के आगरा जिले में हुआ था। शिक्षा भी आगरा में रहकर हुई। बाद में दिल्ली आना हुआ और कई व्यापक साहित्यिक परियोजनाएं यहीं सम्पन्न हुईं। देवताओं की मूर्तियां, खेल-खिलौने, जहां लक्ष्मी कैद है, अभिमन्यु की आत्महत्या, छोटे-छोटे ताजमहल, किनारे से किनारे तक, टूटना, अपने पार, ढोल तथा अन्य कहानियां, हासिल तथा अन्य कहानियां व वहां तक पहुंचने की दौड़, इनके कहानी संग्रह हैं। उपन्यास हैं-प्रेत बोलते हैं, उखड़े हुए लोग, कुलटा, शह और मात, एक इंच मुस्कान, अनदेखे अनजाने पुल। ‘सारा आकाश,’‘प्रेत बोलते हैं’ का संशोधित रूप है। जैसे महावीर प्रसाद द्विवेदी और ‘सरस्वती’ एक दूसरे के पर्याय-से बन गए वैसे ही राजेन्द्र यादव और ‘हंस’ भी। हिन्दी जगत में विमर्श-परक और अस्मितामूलक लेखन में जितना हस्तक्षेप राजेन्द्र यादव ने किया, दूसरों को इस दिशा में जागरूक और सक्रिय किया और संस्था की तरह कार्य किया, उतना शायद किसी और ने नहीं। इसके लिए ये बारंबार प्रतिक्रियावादी, ब्राह्मणवादी और सांप्रदायिक ताकतों का निशाना भी बने पर उन्हें जो सच लगा उसे कहने से नहीं चूके। 28 अक्टूबर 2013  अपनी अंतिम सांस तक आपने  हंस का संपादन पूरी निष्ठा के साथ किया। हंस की उड़ान को इन ऊंचाइयों तक पहुंचाने का श्रेय राजेन्द्र यादव को जाता है।

उदय शंकर

संपादन सहयोग
हंस में आई  कोई भी रचना ऐसी नहीं होती जो पढ़ी न जाए। प्राप्त रचनाओं को प्रारम्भिक स्तर पर पढ़ने में उदय शंकर संपादक का   सहयोग करते  हैं । 
हिंदी आलोचक, संपादक और अनुवादक उदय शंकर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से पढ़े हैं। उन्होंने कथा-आलोचक सुरेंद्र चौधरी की रचनाओं को तीन जिल्दों में संपादित किया है। ‘नई कहानी आलोचना’ शीर्षक से एक आलोचना पुस्तक प्रकाशित।
Facebook-f Twitter Linkedin-in Instagram
उत्तर प्रदेश के बनारस जिले के लमही गाँव में 31 अक्टूबर 1880 में जन्मे प्रेमचंद का मूल नाम धनपतराय था।पिता थे मुंशी अजायब राय।शिक्षा बनारस में हुई। कर्मभूमि भी प्रधानतः बनारस ही रही। स्वाधीनता आंदोलन केनेता महात्मा गांधी से काफी प्रभावित रहे और उनके ‘असहयोग आंदोलन’ के दौरान नौकरी से त्यागपत्र भी देदिया। लिखने की शुरुआत उर्दू से हुई, नवाबराय नाम से। ‘प्रेमचंद’ नाम से आगे की लेखन-यात्रा हिन्दी में जारी रही। ‘मानसरोवर,’ आठ खंडों में, इनकी कहानियों का संकलन है और इनके। उपन्यास हैं सेवासदन, प्रेमाश्रम, निर्मला, रंगभूमि, कायाकल्प, गबन, कर्मभूमि, गोदान और मंगल सूत्र (अपूर्ण)। 1936 ई. में ‘गोदान’ प्रकाशित हुआ और इसी वर्ष इन्होंने लखनऊ में प्रगतिशील लेखक संघ’ की अध्यक्षता की। दुर्योग यह कि इसी वर्ष 8 अक्टूबर को इनका निधन हो गया। जब तक शरीर में प्राण रहे प्रेमचंद हंस निकालते रहे। उनके बाद इसका संपादन जैनेन्द्र,अमृतराय आदि ने किया। बीसवीं सदी के पांचवें दशक मेंयह पत्रिका किसी योग्य, दूरदर्शी और प्रतिबद्धसंपादक के इंतजार में ठहर गई, रुक गई।

नाज़रीन

डिजिटल मार्केटिंग / सोशल मीडिया विशेषज्ञ
आज के बदलते दौर को देखते हुए , तीन साल पहले हंस ने सोशल मीडिया पर सक्रिय होने का निर्णय लिया। उसके साथ- साथ हंस अब डिजिटल मार्केटिंग की दुनिया में भी प्रवेश कर चुका है। जुलाई 2021 में हमारे साथ जुड़ीं नाज़रीन अब इस विभाग का संचालन कर रही हैं। वेबसाइट , फेस बुक, इंस्टाग्राम , ट्विटर जैसे सभी सोशल मीडिया प्लेटफार्म के माध्यम से ये हंस को लोगों के साथ जोड़े रखती हैं। इन नए माध्यमों द्वारा अधिक से अधिक लोगों को हंस परिवार में शामिल करने का दायित्व इनके ऊपर है।
Facebook-f Twitter Linkedin-in Instagram

प्रेमचंद गौतम

शब्द संयोजक
कोरोना महामारी में हमसे जुदा हुए वर्षों से जुड़े हमारे कम्पोज़र सुभाष चंद का रिक्त स्थान जुलाई 2021 में प्रेमचंद गौतम ने संभाला। हंस के सम्मानित लेखकों की सामग्री को पन्नों में सुसज्जित करने का श्रेय अब इन्हें जाता है । मुख्य आवरण ले कर अंत तक पूरी पत्रिका को एक सुचारू रूप देते हैं। इस क्षेत्र में वर्षों के अनुभव और ज्ञान के साथ साथ भाषा पर भी इनकी अच्छी पकड़ है।
Facebook-f Twitter Linkedin-in Instagram

दुर्गा प्रसाद

कार्यालय व्यवस्थापक
पिछले 36 साल से हंस के साथ जुड़े दुर्गा प्रसाद , इस बात का पूरा ध्यान रखते हैं की कार्यालय में आया कोई भी अतिथि , बिना चाय-पानी के न लौटे। हंस के प्रत्येक कार्यकर्ता की चाय से भोजन तक की व्यवस्था ये बहुत आत्मीयता से निभाते हैं। इसके अतिरिक्त हंस के बंडलों की प्रति माह रेलवे बुकिंग कराना , हंस से संबंधित स्थानीय काम निबाटना दुर्गा जी के जिम्मे आते हैं।
Facebook-f Twitter Linkedin-in Instagram

किशन कुमार

कार्यालय व्यवस्थापक / वाहन चालक
राजेन्द्र यादव के व्यक्तिगत सेवक के रूप में , पिछले 25 वर्षों से हंस से जुड़े किशन कुमार आज हंस का सबसे परिचित चेहरा हैं । कार्यालय में रखी एक-एक हंस की प्रति , प्रत्येक पुस्तक , हर वस्तु उनकी पैनी नज़र के सामने रहती है। कार्यालय की दैनिक व्यवस्था के साथ साथ वह हंस के वाहन चालक भी हैं।
Facebook-f Twitter Linkedin-in Instagram

हारिस महमूद

वितरण और लेखा प्रबंधक
पिछले 37 साल से हंस के साथ कार्यरत हैं। हंस को देश के कोने -कोने तक पहुँचाने का कार्य कुशलतापूर्वक निभा रहे हैं। विभिन्न राज्यों के प्रत्येक एजेंट , हर विक्रेता का नाम इन्हें कंठस्थ है। समय- समय पर व्यक्तिगत रूप से हर एजेंट से मिलकर हंस की बिक्री का पूरा ब्यौरा रखते हैं. इसके साथ लेखा विभाग भी इनके निरीक्षण में आता है।
Facebook-f Twitter Linkedin-in Instagram

वीना उनियाल

सम्पादन संयोजक / सदस्यता प्रभारी
पिछले 31 वर्ष से हंस के साथ जुड़ीं वीना उनियाल के कार्यभार को एक शब्द में समेटना असंभव है। रचनाओं की प्राप्ति से लेकर, हर अंक के निर्बाध प्रकाशन तक और फिर हंस को प्रत्येक सदस्य के घर तक पहुंचाने की पूरी प्रक्रिया में इनकी अहम् भूमिका है। पत्रिका के हर पहलू से पूरी तरह परिचित हैं और नए- पुराने सदस्यों के साथ निरंतर संपर्क बनाये रखती हैं।
Facebook-f Twitter Linkedin-in Instagram

रचना यादव

प्रबंध निदेशक
राजेन्द्र यादव की सुपुत्री , रचना व्यवसाय से भारत की जानी -मानी कत्थक नृत्यांगना और नृत्य संरचनाकर हैं। वे 2013 से हंस का प्रकाशन देख रही हैं- उसका संचालन , विपणन और वित्तीय पक्ष संभालती हैं. संजय सहाय और हंस के अन्य कार्यकर्ताओं के साथ हंस के विपणन को एक आधुनिक दिशा देने में सक्रिय हैं।
Facebook-f Twitter Linkedin-in Instagram

संजय सहाय

संपादक

प्रेमचंद की तरह राजेन्द्र यादव की भी इच्छा थी कि उनके बाद हंस का प्रकाशन बंद न हो, चलता रहे। संजय सहाय ने इस सिलसिले को निरंतरता दी है और वर्तमान में हंस उनके संपादन में पूर्ववत निकल रही है।

संजय सहाय लेखन की दुनिया में एक स्थापित एवं प्रतिष्ठित नाम है। साथ ही वे नाट्य निर्देशक और नाटककार भी हैं. उन्होंने रेनेसांस नाम से गया (बिहार) में सांस्कृतिक केंद्र की स्थापना की जिसमें लगातार उच्च स्तर के नाटक , फिल्म और अन्य कला विधियों के कार्यक्रम किए जाते हैं.

Facebook-f Twitter Linkedin-in Instagram