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इस पुस्तक में अपने समय के प्रतिबद्ध साहित्यकारों के उनके समकालीन महत्त्वपूर्ण लेखकों द्वारा विस्तार से लिए गए साक्षात्कार संकलित हैं। इस पुस्तक में नामवर सिंह, कृष्णा सोबती, विश्वनाथ त्रिपाठी, मन्नू भंडारी, दूधनाथ सिंह, निर्मला जैन, काशीनाथ सिंह और केदारनाथ सिंह के साक्षात्कार शामिल हैं। इनमें से बहुत से लेखकों का यह आख़िरी साक्षात्कार है। इन साहित्यकारों के रचनाशीलता पर केंद्रित यह संकलित बातचीत ‘हंस’ की उपलब्धि हैं।
प्रेमचंद की तरह राजेन्द्र यादव की भी इच्छा थी कि उनके बाद हंस का प्रकाशन बंद न हो, चलता रहे। संजय सहाय ने इस सिलसिले को निरंतरता दी है और वर्तमान में हंस उनके संपादन में पूर्ववत निकल रही है।
संजय सहाय लेखन की दुनिया में एक स्थापित एवं प्रतिष्ठित नाम है। साथ ही वे नाट्य निर्देशक और नाटककार भी हैं. उन्होंने रेनेसांस नाम से गया (बिहार) में सांस्कृतिक केंद्र की स्थापना की जिसमें लगातार उच्च स्तर के नाटक , फिल्म और अन्य कला विधियों के कार्यक्रम किए जाते हैं.
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