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भविष्य को अनुमान-सम्भव बनाने के लिए उसे इतनी ही छोटी-छोटी किश्तों में तोडना ज़रूरी है जितनी अतीत को वर्तमान में और वर्तमान को भविष्य में संक्रमित करती हुई हमें प्रत्यक्ष दिखाई दे। इसके आगे-पीछे जो होगा वह अनुमान से अधिक कल्पना होगी और वर्तमान को ही खींचकर तानकर अतीत और भविष्य में फैला रही होगी। यह पुस्तक उसी अतीत होती सदी और स्त्री के भविष्य का सन्दर्भ है। यह पुस्तक तीन खण्डों में अपने पाठकों के लिए उपलब्ध है।
प्रेमचंद की तरह राजेन्द्र यादव की भी इच्छा थी कि उनके बाद हंस का प्रकाशन बंद न हो, चलता रहे। संजय सहाय ने इस सिलसिले को निरंतरता दी है और वर्तमान में हंस उनके संपादन में पूर्ववत निकल रही है।
संजय सहाय लेखन की दुनिया में एक स्थापित एवं प्रतिष्ठित नाम है। साथ ही वे नाट्य निर्देशक और नाटककार भी हैं. उन्होंने रेनेसांस नाम से गया (बिहार) में सांस्कृतिक केंद्र की स्थापना की जिसमें लगातार उच्च स्तर के नाटक , फिल्म और अन्य कला विधियों के कार्यक्रम किए जाते हैं.
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