कविताएं
(राजीव कुमार तिवारी ) [पसीना ] पसीनासजीवों को आता हैनिर्जीवों को नह आतादौड़ने भागनेवालाबहाता है पसीनाबैठे ठाले बहता है पसीनाज्यादा ताप ज्यादा शीत से भी निकलता है पसीनाभय और घबराहट से आता नहीं उतरता है पसीनाश्रमिक जो बहाता है पसीनावह ज्यादा चमकीलाज्यादा गर्मज्यादा नमकीन होता हैत्वचा का रंग नहीं घुलता पसीने मेंवह बस पृष्टभूमि में रहता हैइसलिए ग्लोब पर कहीं भीकिसी भी जीवधारी कापनीला ही होता है पसीनापसीना यूं तो सच ही प्रकट करता हैअतिरंजना की छूट रहती है मगर थोड़ी बहुतउसके गुण धर्म को समझते समझाते समयश्रम के अनुवाद की तरह से भीभय अकुलाहट उकताहट की अभिव्यक्ति के तौर से भी । [वक़्त] वक़्त कहीं नहीं जातावहीं रहता हैजहां उसकी जगह होती हैआदमी गुजर करवक़्त के दायरे सेअपनी यात्रा
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