कुछ घड़ी अंकुश हटाकर बन्धनों के देख
समय की अपनी गति फिर मोह कैसा है..
चल रहा हर एक कदम बस लक्ष्य साधकर
खिल रही कुसुमावलि का रूप कैसा है..
भाँप ले उन्माद चाहे लाख झोंकों का
रोक सकता कौन इन्हें तन भेद सकने से..
तज रहे हैं भोग जिन निधियों को पाने को
वह छिपी हर श्वास भर उन्मुक्त जीने में..
पल्लवी चतुर्वेदी