अपने अंतिम समय तक राजेन्द्र यादव साहित्य साधना करते रहे। उनके इसी सक्रियता और जज्बे को सलाम करते हुए 28 अक्तूबर को राजेन्द्र यादव जी स्मृति में एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया जाता है। 2014 पहली स्मृति सभा में हिन्दी भवन में नामवर सिंह और अन्य जाने-माने साहित्यकारों के सान्निध्य में उन्हें याद किया गया। इस अवसर पर उन पर बनी फिल्म हस्ताक्षर दर्शकों को दिखाई गई। 2015 में दूसरी स्मृति सभा साहित्य अकादमी में रखी गई जहां हंस के सरोकार विषय पर विचार-गोष्ठी आयोजित की गई जिसमें अर्चना वर्मा, हिलाल अहमद, जयप्रकाश कर्दम, संजय सहाय और विभास वर्मा ने राजेन्द्र यादव को याद करते हुए उनके और हंस के सरोकारों पर बात की।
वर्ष 2017 राजेंद्र यादव की पुण्यतिथि पर हंसाक्षर ट्रस्ट के सौजन्य से त्रिवेणी कला संगम में आयोजित परिचर्चा का विषय था पत्रकारिता खतरे और चुनौतियां। आलोक मेहता राहुल देव प्रियदर्शन विनीत मुख्य वक्ता थे संचालक थे रविकांत।
राजेंद्र यादव की पुण्यतिथि हंस साहित्योत्सव 2016 के रूप में त्रिवेणी सभागार में 5 नवंबर 2016 को नई दिल्ली में मनाई गई। मन्नू भंडारी द्वारा बटन दबाकर हंस की वेबसाइट इस अवसर पर लॉन्च की गई। कहानी पर केंद्रित इस परिचर्चा में विभिन्न पीढ़ियों के अनेक कहानीकारों के सम्मिलन तथा संवाद का यह अनूठा कार्यक्रम चार सत्रों में संपन्न हुआ जिसमें वक्ताओं से इतर कई महत्त्वपूर्ण लेखकों ने शिरकत की।
शोभा अक्षर, ‘हंस’ से दिसम्बर, 2022 से जुड़ी हैं। पत्रिका के सम्पादन सहयोग के साथ-साथ आप पर संस्थान के सोशल मीडिया कंटेंट का भी दायित्व है। सम्पादकीय विभाग से जुड़ी गतिविधियों का कार्य आप देखती हैं।
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प्रेमचंद की तरह राजेन्द्र यादव की भी इच्छा थी कि उनके बाद हंस का प्रकाशन बंद न हो, चलता रहे। संजय सहाय ने इस सिलसिले को निरंतरता दी है और वर्तमान में हंस उनके संपादन में पूर्ववत निकल रही है।
संजय सहाय लेखन की दुनिया में एक स्थापित एवं प्रतिष्ठित नाम है। साथ ही वे नाट्य निर्देशक और नाटककार भी हैं. उन्होंने रेनेसांस नाम से गया (बिहार) में सांस्कृतिक केंद्र की स्थापना की जिसमें लगातार उच्च स्तर के नाटक , फिल्म और अन्य कला विधियों के कार्यक्रम किए जाते हैं.