31 जुलाई प्रेमचंद जयंती का दिन हंस के पुनप्र्रकाशन का भी दिन है। प्रसिद्ध कथाकार श्री राजेन्द्र यादव ने 31 जुलाई 1986 से हंस का पुनर्प्रकाशन किया। हर वर्ष हंस की सालगिरह 31 जुलाई के दिन व एक विचार गोष्ठी का आयोजन करते थे । इस कार्यक्रम में विभिन्न सामाजिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक और समसामयिक मुद्दों पर सेमिनार आयोजित किए जाते रहे हैं जिनमें अपने-अपने क्षेत्र के प्रबुद्ध विशेषज्ञ शिरक्त करते हैं। साहित्य जगत में इन कार्यक्रमों की पूरे वर्ष खूब चर्चा रहती है। जिन विषयों को इस दिन हंस के मंच से उठाया गया वे हैं-
1.संविधान सम्मत होने का अर्थ- 2022
2.मुख़ालफ़त या बग़ावत – व्याख्या , दुर्व्याख्या , पुनर्व्याख्या – 2021
3.मध्यकाल का साहित्य – मोह और प्रासंगिकता – 2020
4.राष्ट्र की पहेली और पहचान का सवाल – 2019
5.लोकतंत्र की नैतिकताएं और नैतिकताओं का लोकतंत्र – 2018
6. विकास का अर्थ 2017
7. लोकतंत्र और राष्ट्रवाद: मीडिया की भूमिका, 2016
8. राजनीति की सांस्कृतिक चेतना, 2015
9. वैकल्पिक राजनीति की तलाश, 2014
10. अभिव्यक्ति और प्रतिबंध, 2013
11. दीन की बेटियां, 2012
12. साहित्यिक पत्रकारिता और हंस, 2011 (हंस रजत जयंती वर्ष)
13. वैदिकी हिंसा, हिंसा न भवति, 2010
14. युवा रचनाशीलता और नैतिक मूल्य, 2009
15. भारत: इधर और उधर, 2008
16. इतिहास और व्याख्याएं, 2007
17. यातना, संघर्ष और स्वप्न: प्रेमचंद की समकालीनता, 2006
18. प्रेमचंद और भूमि समस्या, 2005
19. भारतीयता की अवधारणा, 2004
20. स्त्री: अंतिम उपनिवेश, 2003
21. हिंदी क्षेत्र का नवजागरण, 2002
22. समाज, सत्ता और संस्कृति, 2001
23. बाजार और संस्कृति, 2000
24. राष्ट्र और राष्ट्रवाद, 1999
25. उपन्यास समीक्षा, 1998
26. हिंदी पत्रकारिता में स्त्री, 1996
27. हिंदी प्रदेश और वैचारिक संकट, 1995
28. हिंदी साहित्य में दलित चेतना: विशेष संदर्भ प्रेमचंद, 1992
29. न लिखने का कारण, 1991
30. भारतीय भाषाएंं और अंग्रेजी: बदलते समीकरण, 1990
31. हिंदी कहानी की अंतर्बाधाएं, 1989
शोभा अक्षर, ‘हंस’ से दिसम्बर, 2022 से जुड़ी हैं। पत्रिका के सम्पादन सहयोग के साथ-साथ आप पर संस्थान के सोशल मीडिया कंटेंट का भी दायित्व है। सम्पादकीय विभाग से जुड़ी गतिविधियों का कार्य आप देखती हैं।
आप इनसे निम्नलिखित ईमेल एवं नम्बर पर सम्पर्क कर सकते हैं :
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प्रेमचंद की तरह राजेन्द्र यादव की भी इच्छा थी कि उनके बाद हंस का प्रकाशन बंद न हो, चलता रहे। संजय सहाय ने इस सिलसिले को निरंतरता दी है और वर्तमान में हंस उनके संपादन में पूर्ववत निकल रही है।
संजय सहाय लेखन की दुनिया में एक स्थापित एवं प्रतिष्ठित नाम है। साथ ही वे नाट्य निर्देशक और नाटककार भी हैं. उन्होंने रेनेसांस नाम से गया (बिहार) में सांस्कृतिक केंद्र की स्थापना की जिसमें लगातार उच्च स्तर के नाटक , फिल्म और अन्य कला विधियों के कार्यक्रम किए जाते हैं.