मुहल्ले के नुक्कड़ पर एक नीम का पेड़ था और उसके नीचे कूड़े का ढ़ेर…, पॉलीथिन की थैलियाँ, कागज के टुकड़े, सड़ी हुईं सब्जियाँ, रसोई के कचरे, जूठन, गोबर इत्यादि यत्र-तत्र फैले हुये थे, जिससे बदबू भरी हवा उठती रहती। दोपहर के बाद जब गर्मी बढ़ जाती तो बास मारने लगती थी। कभी-कभी समस्या गंभीर हो जाती तो आस-पास के घरवाले उस तरफ की खिड़की बन्द कर लेते थे। पास से गुजरनेवाले नाक पर रूमाल डाल लेते थे, यदि बहुत दिक्कत होती तो उधर से मुँह फेर लेते या रास्ता बदल लेते थे।
कूड़े का कुछ हिस्सा उड़-उड़ कर नाली में जाने लगा और धीरे-धीरे नाली जाम हो गयी। पानी उछलकर सड़क पर बहने लगा था। कार सवार उधर से गुजरता तो कुछ प्रतिक्रिया नहीं देता क्योंकि कार की खिड़की बन्द रहती थी, उन्हें कुछ पता नहीं चलता था। कार गारा बनाती हुई गुजर जाती थी। सायकिल या बाईक का पहिया उस गंदे पानी में छपछपाता चलता तो बाईक सवार मुहल्लेवाले को गाली देता, उन्हें बूरा-भला कहता. लेकिन पैदल चलनेवाला ज्यादातर उसी मुहल्ले का होता, उसे ही सबसे ज्यादा दिक्कत होती थी। वह जब अकेले होता तो किसी तरह बच-बचाकर चुप-चाप निकल जाता, परंतु एक से अधिक, दो या तीन होने पर चर्चा अवश्य छेड़ देता था । जब चर्चा शुरू हो जाती तो नुक्कड़ के कोनेवाले घर के तिवारीजी स्वंय को रोक नहीं पाते और बड़बड़ाते हुए निकल पड़ते, “दुनियाँ भर के लोग आते–जाते हैं, किसको क्या पड़ी है ? रात- दिन रहना तो हमें है…., नरक भोगने के लिये तो हम ही हैं।“
पड़ोस का लौंडा दिनभर न जाने कहाँ मारा-मारा फिरता, पर ऎसे वखत अवश्य टपक पड़ता, “ देख चचा, एक अर्जी दे दो म्युनिसपैलिटी में…. अभी, सब ठीक हो जायेगा…।”
“ क्या ठीक हो जायेगा… दसियों अर्जी दे डाली… पर कोई सुनता कहाँ है ?”
“ सुनेगा, सुनेगा… सब सुनेगा.. , चलो… मेरे साथ…।”
“ तू .. तू क्या उखाड़ लेगा… म्युनिसपैलिटी वाले बड़े नमकहराम हैं…!” “ अरे चचा.., खाली हाथ जाओगे…तो कौन सुनेगा., जेब भरके जाओ न..,” उसने पन्नी फाड़ी और सारा मसाला मुँह में उड़ेल लिया ।
“ ये कोई मेरे बाप की सड़क है… जो मैं जेब भरके जाऊँ.. । समाज का काम है दस भाई के जिम्मे है, जो चाहे करें।”
“ सुनो… सुनो.. समाज की दुहाई मत दो…, बस्स.., यहाँ पर चार घर हैं…, इन्हीं चार घरों का कूड़ा पड़ता है… ”, गुप्ताजी ने अँगुली दिखाते हुए कहा ।
“ चार ही घर क्यों ? पानी तो पूरे मुहल्ले का बहता है.., पानी है, तबही तो कूड़ा सड़ रहा है.” कोहली बोल उठा ।
“ सुनो भाई कोहली… बूरा मत मानना… ये कूड़ा जाता है नाली में … नाली हो जाती है बंद .. तो पानी कहाँ जायेगा..?”
बात बढती जा रही थी.. लोग घरों से निकलकर भन-भनाते हुए पेड़ के नीचे जमा हो रहे थे । जिसके समझ में जो आ रहा था बोले जा रहा था । कुछ देर बाद रामप्रसाद जी आ गये… रामप्रसाद जी वार्ड मेम्बर थे।उन्होंने सबको चुप कराने की कोशिश की…, “ सुनो.. सुनो, लड़ने-झगड़ने से कुछ नहीं होगा…, शांति से समाधान निकालो…। “
“… तो तुम्ही कुछ करो न, तुम तो राजनीतिक आदमी हो, एम एल ए साहब से भी जान-पहचान है तुम्हारी, उनसे कहकर क्यों नहीं काम करवाते हो…? मुहल्ले में जगह-जगह कूड़े पड़े हैं उसे हटवाओ..,” कोहली लपक पड़ा था ।
“ वो तो ठीक है… पर एम एल ए यादवजी तो समाजवादी पार्टी के हैं…वे क्यों करेंगे.. ? उनसे कहो…, जिसने स्वच्छता अभियान चला रखा है.., जिसने जगह-जगह सफाई करते हुए फोटो खिंचवाई थी । अखबार, टीबी सभी जगह झाड़ू के साथ जिनका फोटो अटा पड़ा था ।”
“ तो क्या कमल छाप वाले यहाँ पर आकर झाड़ू लगायेंगे… ? लेकिन वोट तो दिया आपने साइकिल छाप को…, वाह रे वाह ! जिताया किसी और को और काम की अपेक्षा कर रहे हैं किसी और से…,” मिश्राजी असहज होकर बोल गये. “ ये तो कोई बात नहीं हुई…, जिसकी सरकार है उसके लोगों को ध्यान देना चाहिये ।एमलए साहब तो विपक्ष में है…, वह कहाँ से काम करायेंगे ?,” रामप्रसादजी ने भी सफाई दी ।
“ खूब पॉलिटिक्स करते हैं आप लोग ! ऎं…, जरा भी शर्म-लिहाज नहीं है आप लोगों को… ।”
“आपलोगों की तरह बेशर्म नहीं हैं..। झंडा लेकर घूम रहे हैं किसी और पार्टी का.., और काम के लिये मुँह ताक रहे है किसी और पार्टी का..।”
“ देखो.. कमीना पंथी मत करो…, सबको मालूम है.. कि आपलोग क्या हैं ? मुँह मत खुलवाओ, ” मिश्राजी तैश में थे।
रामप्रसादजी भी पीछे हटनेवालों में नहीं थे। वह भी एक से एक घटिया आरोप लगा रहे थे । धीरे-धीरे शब्दों की गरिमा घटती जा रही थी और वे नीचता पर उतरते जा रहे थे । बात बिगड़ती देख लोगों ने दोनों को चुप कराने की कोशिश की, कुछ रामप्रसादजी को एक तरफ़ ले गये तो कुछ ने मिश्राजी को दूसरी तरफ । फिर भी झगड़ा शांत नहीं हुआ ।
नाली का पानी सड़क पर मचलता हुआ बह रहा था। बजबजाते कूड़े में कीड़े रेंग रहे थे.. और मच्छरों का झुंड आराम से वंशबृद्धि कर रहा था।
दस-बारह मजदूरों का समूह जो अभी-अभी वहाँ पर आया था, जो मुहल्लेवालों के झगड़े का तमाशबीन बना था तथा जिनके हाथों में कुदाल और फावड़ा था, उनकी इच्छा हुई थी कूड़ा साफ कर नाली का पानी खोल देने की, पर उन्होंने सोचा—बड़ी कोठी वाले जब संवेदनहीन होकर लड़ रहें हैं…, उन्हें गरज नहीं है तो हमें क्या…? हमें कौन मजदूरी मिलनेवाली है… या बख्शीश मिलनेवाली है….?
वे भी पानी में पैर छपछपाते आगे बढ़ गये.., परंतु दो ही कदम बाद वे वापस मुड़े, नाली को देखा । एक ने कहा, “ यह तो पाँच ही मिनट का काम है । “
दूसरे ने कहा, “…फिर भी इन लोगों को काम से मतलब नहीं है…, राजनीति करने से मतलब है। वे बात-बतंगड़ के द्वारा एक-दूसरे को नीचे दिखाना चाहते हैं तथा स्वंय को श्रेष्ठ साबित करना चाहते हैं । “
तीसरे ने कहा, “ चलो.., इनका टंटा ही खत्म कर देते हैं ।“ …और वह कुदाल उठाकर नाली साफ करने लगा । देखते ही देखते मजदूरों ने कूड़ा साफ कर दिया और नाली का पानी खोल दिया ।
अब मुहल्ले वालों के पास कोई मुद्दा नहीं था । वे चुप हो गये और आश्चर्य चकित होकर उन्हें देखने लगे । कुछ देर बाद जब नाली साफ हो गयी वे मुँह छुपाने लगे, और धीरे से अपने-अपने घरों में घुस गये ।
(मनोज मंजुल)