जो हूं और जो होना चाहता था
कहां होना था मुझको
जहां हूं
या जहां होना चाहता था मैं
क्या इस प्रश्न का उत्तर
किसी के पास है कोई ?
जहां हूं
और जहां होना चाहता था
के मध्य जो संघर्ष है
क्या जीवन
उसी से रूप और आकर नहीं पाता है ?
समय जो चित्र बनाता है हमारा
उसमें हर रंग हर रस का मिश्रण होता है
पर प्रकट कभी कोई विशेष
रस या रंग ही होता है
क्या यही पाने और चाहने के मध्य के खींच तान में हमारी उपलब्धि है ?
जहां प्रवाह रुक गया नदी जल का
जो होना चाहता था
वो जो हूं
भर रह गया
अपने वर्तमान से अवकाश लेकर
समय की किताब में
फिर लौटना चाहता हूं
उसी अनुच्छेद तक
और उन तमाम अवरोधों को
हटाने की एक और कोशिश करना चाहता हूं
ताकि जो हूं को
जो होना चाहता था
में बदल सकूं ।
करोना काल : कुछ प्रश्न
जीवन कब अपनी गति में लौटेगा
हम कब जीवन की पगडंडी पे लौटेंगे
किसी अबूझ पहेली सा ये समय है
पल पल एक रहस्य है
भय है संशय है अनिश्चय है
इन प्रश्नों का हल क्या हम पाएंगे
क्या इन अंधेरों के पार जा हम पाएंगे
सबकुछ अस्त हो जाएगा धीरे धीरे
या फिर प्रात सूरज की लालिमा से
क्षितिज का कोना कोना दमकेगा चमकेगा फिर से
राह आशा की कहीं कोई खुलती हुई दिखती नहीं
प्रयत्नों की गति इससे मगर रुकती नहीं ।
दोहरापन
तुम्हारा कोई अपना
नहीं अटका पड़ा है
किसी दूसरे शहर में
इन कठिन दिनों में
भूख और भय की दोहरी मार सहता
आशंका और अनिश्चय के मध्य झूलता हुआ
सभी अपने तुम्हारे सुरक्षित हैं
अपने अपने घरों में
जीवन का हद संभव आनंद लेते हुए
तभी तुम कह पाते हो
श्रमिकों को घर वापस लाने वाली रेल गाड़ी को
Corona express
महामारी एक्सप्रेस
तुमको नहीं पता
कैसी व्याकुलता और विवशता है
उन लोगों की
जो पांव पैदल ही
हजार दो हजार मील की यात्रा ठान रहे हैं
किसी ट्रक बस टेम्पो में
ठसा ठस भरे हुए
निकल पड़े हैं जो लोग
अपनी पत्नी बच्चे
यहां तक कि बुजुर्गो के साथ भी
अपने गांव घर तक पहुंचने के लिए
नहीं समझी जाती तुमसे
उनके द्वारा भोगी जा रही पीड़ा
तुम जब ये जानोगे
कि उनमें से बहुतों के कच्ची मिट्टी के घर
वर्षों हुए
मौसम की मार सहकर टूट गए हैं
बालिस्त भर जमीन का टुकड़ा भी नहीं
कितनों के पास खेती के लिए
तुम उनके लौटने को
पूरी तरह गैर जरूरी ठहराओगे
तुम्हें उनका लौटना
एक आपराधिक कृत्य जैसा लग रहा है
असह्य हो रहा है
तुम्हारे लिए उनकी वापसी के औचित्य को स्वीकार पाना
चिंता सताने लगी है तुम्हें
कि वापस लौटते ये लाखों लोग
लौटकर आखिर करेंगे क्या
तुम उनके हित की चिंता नहीं कर रहे हो इस तरह भी
तुम आशंकित हो दरअसल
तुम्हारी समझ कहती है
कि इन श्रमिकों के वापस आने से
महामारी का प्रसार बढ़ेगा
अपराध बढ़ेगा
सामाजिक असुरक्षा बढ़ेगी
जिससे आखिरकार
सुख चैन से गुजर रही तुम्हारी जिंदगी में
थोड़ी असुविधा बढ़ेगी
बहुत दोहरापन है तुम्हारी सोच में ।
राजीव कुमार तिवारी
मुख्य गाड़ी लिपिक, जसीडीह
पूर्व रेलवे
प्रोफेसर कॉलोनी, बिलासी टाउन
देवघर, झारखंड
9304231509, 9852821415