पति की मृत्यु के बाद सुमित्रा को मजबूरन अपने पुत्र और पुत्रवधू के पास महानगर में आकर रहना पड़ रहा था । बहू ने यह जताने में कोई कसर नहीं छोड़ी कि सुमित्रा उसकी बसी-बसाई गृहस्थी में सेंध लगा रही थी। सुमित्रा को झुंझलाहट होने लगी थी बहू की रोक-टोक से ‘ इस बर्तन में छोंक क्यों लगा दिया ,इस बर्तन को गैस पर क्यों रखा ,तेल इतना क्यों डाल दिया….’ । पैंतीस साल से गृहस्थी संभाल रही थी ,आधी उम्र रसोई में बीत गयी और आज उससे आधी उम्र की लड़की ने उसकी कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह लगा दिए।कहती हैं ” आप जरा सा काम करतीं हो सारी रसोई फैला कर रख देती हों ।इस से अच्छा मैं ही सुबह आपके लिए सब्ज़ी और रोटी बनाकर रख जाती हूं ,गर्म कर खां लेना।”
बेटा-बहू तो दोनों सुबह आठ बजे के निकलें रात नौ बजे तक घर आते ,वह सारा दिन क्या करें। उसपर बहू की बनाई हुई उबली सब्जी से रोटी खाना सोचकर ही उबकाई आने लगती। कहां तो सोचकर आयी थी दोनों को गर्म स्वादिष्ट भोजन बना कर खिलाया करेंगी, लेकिन दोनों आधे से ज्यादा समय बाहर ही खाकर आते हैं तब तेल नहीं नजर आता।
सुमित्रा का बहू बेटे के पास बिल्कुल मन नहीं लग रहा था, दसवीं मंजिल की बालकनी से नीचे झांकते हुए सोच रहीं थीं उसके जीने का क्या औचित्य है। अपनी जीवनलीला समाप्त कर दे तो किसी को क्या अंतर पड़ेगा,स्वयं भी इस घुटन से निजात पा लेंगी। तभी बगल वाले फ्लैट की बालकनी पर नजर पड़ी तो दिल धक् रह गया। वहां से एक बीस इक्कीस साल का लड़का नीचे कूदने की तैयारी में लग रहा था।
‘ है भगवान आजकल के बच्चों को क्या हो गया है,सारा दिन मस्ती में रहते हैं, अवश्य ही परीक्षा में अनुत्तीर्ण हो गया होगा अब आत्महत्या करने की सोच रहा है।
वह लपक कर अपने फ्लैट से निकलकर सामने वाले फ्लैट में घुस गई। गनीमत है फ्लैट का दरवाजा अंदर से लाॅक नहीं था। बालकनी में पहुंची तो लगा शुक्र है लड़का अभी तक कूदा नहीं था। तुरंत उसका हाथ पकड़ कर कमरे में ले गयी और उसको डांटना शुरू कर दिया। ” दिमाग खराब हो गया है इस जीवन को खत्म करना चाह रहे हों जो भगवान का दिया अनमोल वरदान है। कितनी मुश्किल से मनुष्य योनि मिलती है घबरा कर खत्म करना कहां तक उचित है,हर समस्या का समाधान….।”
वह लड़का बीच में टोकते हुए बोला :” जब आंटी इतना सब जानती हो तो स्वयं क्यों बालकनी से नीचे कूदने की सोचती हों?”
सुमित्रा आवाक उसे देखती रह गई फिर धीरे से बोली :” जब अपने परायों जैसा व्यवहार करने लगे तो जीवन भारी लगने लगता है।”
वह शरारती मुस्कान के साथ बोला :” तो आप परायों के साथ अपनों जैसा व्यवहार करके जीवन हल्का कर लो ।हम चारों लड़के अच्छे खाने को तरस जाते हैं आप हम चारों के लिए यहां खाना बनाए तो कैसा रहेगा। आप भी हमारे साथ मनपसंद खाना खा सकतीं हैं ।”
सुमित्रा ने नम आंखों से हामी भर दी।