हर चीज़ का अपना डोमेन होता है और जब यह अपने डोमेन से बाहर जा कर अनावश्यक रूप से सक्रिय और उत्तेजित अवस्था में रहे तो नुकसान की सम्भावना अधिक होती है।
विज्ञान का भी अपना डोमेन है। बस एक बात जानना चाहता हूँ कि हम मनुष्य कितना विज्ञान जानते हैं। जो विज्ञान हमने जाना है वो अपने लिए जाना है। प्रकृति में सारी भौतिकीय घटनाएं हमारे अस्तित्त्व के पहले से विद्यमान हैं। और जो 99.99 प्रतिशत हम अभी तक नहीं जानते उसका क्या?जब न्यूटन ने विभिन्न नियमों का प्रतिपादन किया तब, क्या वो सभी भौतिकीय घटनाएं उसके बाद प्रकृति में प्रगट हुईं। गुरुत्त्वाकर्षण बल, न्यूटन के पहले विद्यमान था ही नहीं क्या या जड़ता विद्यमान नहीं थी।
जिस तरह धर्म के प्रति अत्यधिक झुकाव मनुष्य को धर्मांध बनाता है उसी तरह विज्ञान के प्रति अत्यधिक झुकाव मनुष्य को अहंकारी और दोहक बनाता है।संतुलन आवश्यक है। और यह बात हमें अच्छी तरह समझनी चाहिए कि प्रकृति को न तो मनुष्य निर्मित्त धर्म की आवश्यकता है न ही 00.01 प्रतिशत विज्ञान की। इस धरती को सबसे अधिक नुकसान मनुष्यों ने पहुँचाया है, इसका दोहन किया, इसके संतुलन के साथ खिलवाड़ किया इस भ्रम की साथ कि उसे समूचा विज्ञान आता है अथवा वह धर्म को जानता है।
घड़ी में बैटरी ख़त्म हो जाने से समय रुक जाता है क्या? न्यूटन ने नहीं बताया होता तो भी गुरुत्त्वाकर्षण बल अपना काम कर रहा होता। बर्जीलियस,रुदरफोर्ड,हेजेनबर्ग, मैक्स प्लैंक जैसे लोगों की बिना भी रासायनिक और भौतिक घटनाएं, अभिक्रियाएं प्रकृति में निर्विघ्न रूप से हो रही होतीं।हम जो भी सीखते हैं अपने लिए और इसके उपयोग से अंततोगत्वा प्रकृति का दोहन करते हैं।
बुरा मानने के लिए हर कोई स्वतंत्र है लेकिन प्रकृति के लिए हमारा बनाया धर्म भी अफ़ीमहै और विज्ञान भी क्यूँकि इन दोनों से उसका कोई विशेष भला नहीं हो रहा।मैं आश्यर्यचकित बिलकुल भी नहीं होता जब, प्रकृति के सामने एक धूलकण के समान विज्ञान लिए कोई अफ़ीमची की तरह व्यवहार कर रहा होता है तो, कोई प्रकृति के सामने एक धूलकण के समान धर्म लिए। लेकिन प्रकृति में स्वतः विध्वंस का प्रावधान है और ऐसा तभी होगा जब ब्रह्माण्ड की एंट्रॉपी ख़तरे के निशान के पार चली जाए। तो बढ़ने दीजिये एंट्रॉपी. धर्म के द्वारा यह कितनी बढ़ेगी यह बताना मुश्किल है लेकिन प्रकृति के सामने एक धूलकण के समान विज्ञान के द्वारा तो यह निश्चित रूप से बढ़ेगी।या तो फिर संतुलित रहिये और अपने-अपने धार्मिक और विज्ञानी अहंकार को विनम्रतापूर्वक प्रकृति के हवाले कर दीजिये।