ग़ज़ल
क़ुरबतों की रुत सुहानी लिख रहा है
बात वो सदियों पुरानी लिख रहा है
साहिलों की रेत पर मौजों से आख़िर
कौन हर लम्हा कहानी लिख रहा है
पत्थरों के शह्र से आया है क्या वो
मौत को जो ज़िंदगानी लिख रहा है
शोर साँसों का मचाकर हर बशर क्यूँ
अपने होने की निशानी लिख रहा है
उम्र भर था जो रहा भरता ख़ज़ाने
ज़िन्दगी को आज फ़ानी लिख रहा है
अस्ल में बेरंग करता है धरा को
लिखने को बेशक़ वो धानी लिख रहा है
है यही तासीर चाहत की ‘सिफ़र’ क्या
आग को भी दिल ये पानी लिख रहा है
अंजली ‘ सिफर ‘ की ग़ज़ल प्रभावित करती है । बधाई !
अंजली… आप की ग़ज़ल मन की गहराई मे उतरती है।