सरकारी बैंक में कार्यरत सुयश कुमार के स्थानंतरण के दो महीने हो चुके थे, परंतु किराये का मकान उसे अभी तक नहीं मिला था, जबकि उसने यहाँ ज्वाइन करते ही सभी सहकर्मियों, वेंडरों व खास ग्राहकों को मकान खोजने के लिये कह दिया था ।
सुबह की हवा थी इसलिये ठंढक महसूस हो रही थी । आर के त्रिपाठी ने चाय की अंतिम घूंट ली और पाठक जी के घर की ओर चल पड़ा, उसने सुयश कुमार को जल्द ही मकान खोजने का आश्वासन दिया था । उसे पता चला था कि पाठक जी के मकान के उपर के तल का हिस्सा खाली था ।
“ पाठक जी, आपके घर के उपर वाला हिस्सा खाली है क्या ? हमारे कर्यालय में एक अधिकारी आयें हैं, उनके लिये किराये की एक मकान की आवश्यकता है ।“ उसने लगभग प्रश्न पूछते हुए कहा था ।
” हाँ.., हाँ, खाली तो है । आप चाहे तो दिखा सकते हैं, लेकिन कैसे हैं वे…? मांस-मच्छी खाने वाले तो नहीं है ? क्योंकि हम लोग शुद्ध शाकाहरी हैं और पवित्रता से रहने वाले हैं ।
“ ठीक है, हम उनसे पूछ कर बताते हैं । उपर के पोर्सन में क्या क्या है ? दो रुम तो होंगे न ?”
“ हाँ, हाँ, दो रुम, एक किचेन, एक ट्वाइलेट एवं बाथ रुम भी है । “
अगले दिन जब आर के त्रिपाठी पुन: पाठक जी के पास पहुँचा तो पाठक जी ने पूछ ही लिया, “ अच्छा यह बताइये कि आपके अधिकारी का नाम क्या है ?
“ नाम तो सुयश कुमार है । “
“ आगे क्या लिखते हैं ? “
“ आगे… , माने सरनेम..? टाइटिल ? “ ” हाँ.., हाँ, वही । “
“ वह तो पता नहीं.., सरनेम नहीं लिखते हैं । “
“ अच्छा तो इसका मतलब है कि वह निम्न जाति के हैं…, उन लोगों को मकान नहीं देना है…, उन लोगों का क्या भरोषा… ? मांस-मच्छी तो खाते ही होंगे…, उनके पास कोई आचार- विचार नहीं होता…, धर्म भ्रष्ट नहीं करवाना है…। “ पाठक जी ने मकान देने से मना कर दिया ।
आर के त्रिपाठी ने सीधे असली बात सुयश कुमार से नहीं बताई, उसने छिपाते हुए कहा कि पाठक जी के यहाँ मकान खाली तो है, परंतु उनके घर में शादी होने वाली है इसलिये वह अभी नहीं देना चाहते ।
मकान के लिये सुयश कुमार जहाँ भी जाता, माकान मालिक उससे उसका सरनेम अवश्य पूछता, यदि सीधे तरीके से पता नहीं चलता तो बात घुमाकर जानने की कोशिश करता, उसके पिता का नाम पूछ कर या कोई अन्य बहाने…, । जब उसे पता चल जाता कि वह निम्न जाति से हैं तो वह मकान देने से इंकार कर देता ।
वह उच्च शिक्षा प्राप्त एम बी ए था, परंतु उससे कोई नहीं पूछता की आपकी योग्यता क्या है ? आप इतनी कम उम्र में कैसे तरक्की कर शाखा प्रबंधक बन गये हैं ? लोग यही समझते कि आरक्षण की वजह से ही उसे नौकरी एवं प्रोन्नति मिली है।
वह बचपन से ही सुनता आ रहा था कि जाति-पाति की मूल वजह अशिक्षा और अज्ञानता है, आधुनिक शिक्षा के अभाव में यह सब फल-फूल रहा है, जैसे ही लोग शिक्षित होंगे, जाति-पाति स्वत: ही समाप्त हो जायेगी, लेकिन अब उसे यह महसूस होने लगा था कि यह समाप्त होने वाली नहीं है। पढे-लिखे लोग भी परंपरा के नाम पर मानसिकता बदलने को तैयार नहीं हैं, वे आधुनिक शिक्षा को केवल धनोपार्जन का माध्यम समझते हैं और पारंपरिक रुढ़िवादी आचार-व्यवहार को संस्कार ।
उसने एक तरकीब सोची, अब वह जहाँ भी मकान खोजने जाता तो पहले सरनेम बताता, उसके बाद यह कहता कि वह एक साल का किराया एडवांस में देने को तैयार है और मांस-मच्छी भी नहीं खाता है ।
यह बात सुनकर कई मकान मालिक उसे गंभीरता से लेने लगे । एक साल का किराया एडवांश यनि बड़ी रकम और बड़ी रकम के लिये मुँह से लाड़ टपकना स्वभाविक था । अब उनके सामने धर्म भ्रष्ट होने वाली बात नहीं थी क्योंकि बड़ी रकम से बड़ा काम हो सकता था, किसी के बच्चे के लिये कॉलेज की फीस हो सकती थी, किसी के अधूरे मकान का काम पूरा हो सकता था तो किसी के घर में कोई वाहन या बाइक आ सकती थी ।
मकान मालिक अब बुला-बुला कर उसे मकान दिखाता, यदि वह उसमें कोई कमी बताता तो वह उसे तुरत ठीक कराने की बात करता । दो तीन दिनों में ही उसके सामने कई किराये के मकान उपलब्ध हो गये थे, परंतु अब उसके सामने यह समस्या उत्पन्न हो गयी कि वह कौन-सा मकान ले क्योंकि उसके दिमाग में रह-रहकर धर्म भ्रष्ट होने वाली बात घुमड़ने लगती थी ।
एक दिन जब वह कार्यालय से मार्केट की ओर जा रहा था, लगभग आधे किलोमीटर जाने के बाद उसे एक मकान दिखाई दिया, जिसके उपर के तल का हिस्सा खाली दिख रहा था । आते-जाते हुए इस मकान पर पहले भी उसकी नजर पड़ चुकी थी । वह उस मकान के पास गया और दरवाजा खटखटाया । उसने मकान मालिक से सर्वप्रथम अपना सरनेम बताया, उसके बाद आगे की बात कहने ही जा रहा था कि मकान मालिक मुस्करा उठा । दरअसल मकान मालिक भी उसी की जाति ( निम्न जाति ) का था, जिसके यहाँ खाने-पीने पर किसी प्रकार की पाबन्दी नहीं थी और न ही किसी प्रकार का धार्मिक भेद-भाव था । मकान मालिक ने कहा—अभी उपर का तल तैयार नहीं है, प्लास्टर कराना बांकी है, इसलिये किराये पर नहीं दे सकता।
उसने कहा—कोई बात नहीं, मैं आपको एक साल का किराया एडवांस दे रहा हूं, आप जल्दी से प्लास्टर का काम पूरा करवा लीजिये । मैं आपके मकान में किराये पर रहना चाहता हूँ ।
उसने अगले ही दिन एडवांस का रुपैया उसे दे दिया । मकान मालिक पहले तो आश्चर्य चकित हुआ, लेकिन एडवांस पाकर खुश हो गया । उसने शीघ्रता से उपर के तल का कार्य करवाया ।
सुयश कुमार ने सोचा—चलो अच्छा हुआ, दकियानूसी विचार वालों के मकान में रहने से अच्छा है खुले विचार वालों के मकान में रहना, मैं अब स्वतंत्रता पूर्वक रहुंगा और इच्छानुसार मांस-मच्छी भी खाउंगा ।
MANOJ MANZUL
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