ऱफ्तार जिदंगी की
रफ्तार जिंदगी की
बेशक माहौल बोझिल, आंखों में खौफ का मंजर, फिजा में मौत का दहशत और दिलों में उदासी है। हर शख्स एक दूसरे से फासले बनाकर रहने को मजबूर है।
परंतु आप यकीन करें आज दूर- दूर होते हुए भी हम इतने निकट कभी नहीं रहे… आप खुद किसी के भी दिल में झांक कर देख लीजिये वहां आपको अपने लिए भी सलामती की दुआओं में झुके हुए सिरों का, बुदबुदाते होठों का, जुड़े हुए हाथों का अक्स नजर आएगा।
हमने यह जान लिया है कि मंदिरों की घंटियों की सुमधुर आवाज से हम वंचित रह सकते हैं, गुरद्वारे केअरदास के लिए तरस सकते हैं, मस्जिदों की अजान से महरुम हो सकते है, चर्चों के सूने गलियारे की उदासी को सह सकते हैं परंतु जबतक इंसान के जज्बे बरकरार हैं, इंसानियत जिंदा है; जिंदगी की रफ्तार धीमी हो सकती है, रुक नहीं सकती।
जरुरत इस बात की है कि हम इस उदासी को अपने स्नेहभरी मखमली लिहाफों के तले गर्माहट दें… उनींदी आंखों को सकून और चैन दें… मजबूर, लाचार और निरीह को आशा की किरणों का सौगात दें… इंसानी संबंधों की नाजुक रेशमी डोर को मजबूती और लचीलापन का एक अनोखा संगम दें।
जीवन की तल्खी का प्रकृति ने अनोखे ढंग से उपचार किया है। आसमान की नीलिमा में निखार आ गया है, चांद खिला – खिला नजर आने लगा है, नदियों की धाराएं संगीतमय हो गई हैं, सैलानी पक्षियों के कलरव में जीवन का उल्लास नजर आने लगा है… और मौसम का यह मिजाज हमें आनेवाले सुहाने समय के प्रति आश्वस्त करता है।
हर किसी के लिए एक नई, सुवासित, ताजी, सुखद और स्वस्थ्य सुबह का यह इंतजार कोरी रस्म अदायगी भर नहीं है: यह विश्वास की वह लौ है जो भयंकर तूफानों में भी जगमगाती है, अंधेरी गुफाओं में भी हमें राह दिखाती है और मंजिल पर पहुंचाकर ही चैन की सांस लेती है।
यह मायूसी जल्द दूर होगी और जिंदगी एक बार फिर मुस्करा उठेगी। आनेवाले उस सकून भरे वक्त में हम अपने इस मुश्किल वक्त को अपनी नम आंखों और मंद मुस्कानों के साथ याद कर रोमांचित हो जाया करेंगे।
देवेन्द्र कुमार मिश्र
अंधेरी (पश्चिम), मुम्बई – 400058