कविता
सबसे अधिक वो रोया
जिसने जमीं को चीर ‘फसल’ को बोया
सबसे अधिक उसको छला गया
जो हँसते हँसते सीने पर ‘गोली’ खा गया
सबसे अधिक वो आंखें रोई
जो वोट देकर ‘आस’ में सोई
औऱ
सबसे अधिक जयजयकार उनको मिली
जिसने कुर्सी की खातिर गन्दी ‘चाले’ चली।
– नरेंद्र दान चारण
हँस पत्रिका समूह आपका बहुत बहुत आभार सा💐💐💐💐