आजादी
“आजादी”
मखमली स्वर्णिम आभा को
प्रतिबिम्बित करने वाला
केवल मात्र शब्द नहीं है
आजादी –
बलिदानों की वेदी या
स्वतंत्रता के नारों का
उद्घोष मात्र भी नहीं है
वास्तव में –
अभेद्य प्रस्तर बन चुकी
परम्पराओं से घिरों का
साकार सुखद स्वप्न है आजादी
चुभते शब्दजालों और
वाक् परम्पराओं के बीच की
छटपटाहट है आजादी
नाकामी के उलहानों और
अवसर की विषमता के बीच
जिद्द की जीत है आजादी
अंधविश्वासी भेड़चाल और
अज्ञानता की जद् में सहसा
शिक्षा का अधिकार है आजादी
पीढ़ी-दर-पीढ़ी चल रहे
ढ़र्रे को तोड़ कर पनपी
तार्किक सोच है आजादी
मजदूर की मुस्कान
हक-दायित्वों का मान
सबका अक्षर-ज्ञान है आजादी
©मधुबाला